मेवाड़ के जगत सिंह द्वितीय ने अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के लिए चार गांव भेंट किए थे। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती मोहम्मद गौरी के साथ भारत आए थे और अजमेर को अपनी कर्मस्थली बनाया था। उसे समय अजमेर में पृथ्वीराज चौहान तृतीय का शासन काल था।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के लिए मेवाड़ के महाराणा जगत सिंह द्वितीय (1734-1751) ने चार गांव दान स्वरूप भेंट किए थे। यह घटना धार्मिक सहिष्णुता और सांप्रदायिक सौहार्द का अद्भुत उदाहरण है। आइए इस पर विस्तार से चर्चा करें
महाराणा जगत सिंह द्वितीय का परिचय
महाराणा जगत सिंह द्वितीय, मेवाड़ के 62वें शासक थे। वे उदयपुर से शासन करते थे और अपने प्रशासन, कला-संस्कृति के प्रेम और धर्म के प्रति सहिष्णुता के लिए जाने जाते हैं। उनके शासनकाल में मेवाड़ साम्राज्य शांति और सांस्कृतिक प्रगति का केंद्र बना रहा।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को गांव दान की घटना
अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह सूफी परंपरा का प्रमुख केंद्र है। यह स्थान इस्लामिक धर्मावलंबियों के लिए श्रद्धा का स्थल है। महाराणा जगत सिंह द्वितीय ने दरगाह के संचालन और जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी व्यक्तिगत संपत्ति से चार गांवों को दान स्वरूप प्रदान किया।
दान किए गए गांवों से होने वाली आय का उपयोग दरगाह की देखभाल, धार्मिक अनुष्ठानों और गरीबों की मदद के लिए किया जाता था।
इसका महत्व
1. धार्मिक सहिष्णुता: यह कदम भारत की बहुधार्मिक संस्कृति में सहिष्णुता और सामंजस्य का प्रतीक है। महाराणा जगत सिंह ने दिखाया कि धार्मिक आस्था में सहयोग और सम्मान का स्थान होना चाहिए।
2. सांस्कृतिक एकता: हिंदू राजा द्वारा एक इस्लामी धार्मिक स्थल को दान देना सांस्कृतिक समन्वय का अनूठा उदाहरण है।
3. इतिहास में विशेष स्थान: यह घटना इतिहास में एक ऐसे समय की याद दिलाती है, जब धर्म और राजनीति को अलग रखते हुए आपसी सद्भाव को प्राथमिकता दी जाती थी।
महाराणा जगत सिंह द्वितीय का यह कार्य उनकी दूरदर्शिता और सहिष्णुता का प्रमाण है। यह घटना भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब और सांप्रदायिक सौहार्द का उत्कृष्ट उदाहरण है, जो आज भी प्रेरणा देती है। यह दान इस बात को भी रेखांकित करता है कि मेवाड़ के शासक न केवल कला और संस्कृति के संरक्षक थे, बल्कि मानवता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी समझते थे।