मध्यप्रदेश के खरगोन शहर में बीते 405 वर्षों से निरंतर भावसार क्षत्रिय समाज द्वारा एक अनोखी परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है. इस परंपरा के तहत नवरात्रि में महाअष्टमी और महानवमी की मध्यरात तीन से छः बजे तक माता का खप्पर निकाला जाता है. इस वर्ष यह आयोजन रविवार और सोमवार की रात ब्रह्म मुहूर्त में मनाया जाएगा. अष्टमी की रात माता अंबे और नवमी की रात मां काली का खप्पर निकलेगा. खास बात यह है कि खप्पर कार्यक्रम में एक ही पीढ़ी के सदस्य दायित्व निभाते है.
खप्पर आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. मोहन भावसार बताते हैं कि पुरातन परंपरा से जोड़े रखने के उद्देश को लेकर भावसार समाज द्वारा 405 वर्षों से खप्पर निकालने की परंपरा चली आ रही है. कार्यक्रम में सबसे पहले झाड़ की विशेष पूजा-अर्चना की होती है. इसके बाद महाअष्टमी पर परंपरागत निमाड़ी गरबियों के साथ भगवान श्री गणेश निकलते है. इसके पश्चात माता अंबे की सवारी निकाली जाती है. इस दौरान मां अम्बे एक हाथ में खप्पर और दूसरे हाथ में खुली तलवार लेकर सवा घंटे तक रमती है.
शेर पर सवार होकर निकलती है मां काली
महानवमी पर भी पहले गरबियों के साथ भगवान श्री गणेशजी निकलते हैं और बाद में माता महाकाली शेर पर सवार होकर निकलती हैं. मोहन भावसार का कहना है कि महानवमी को ना दिन होता है ना रात होती है, इसीलिए इस दिन सुबह सुबह भगवान नरसिंह द्वारा हिरण्यकश्य के वध के पश्चात कार्यक्रम का समापन होता है. इसके बाद ही समाज दशहरे का पर्व मनाता है. खप्पर के दौरान गरबियों पर माता रमती है. यह पूरा कार्यक्रम भावसार मोहल्ला स्थित श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर प्रांगण में संपन्न होता है. इतने वर्षों में इस परंपरा में किसी प्रकार का कोई बदलाव नहीं हुआ है.
एक ही परिवार की पीढ़ी निभाती है दायित्व
आपको बता दें कि खप्पर कार्यक्रम में माता अंबे, मां काली, श्रीगणेश, भगवान नरसिंह सहित अन्य किरदारों का दायित्व निभाने वाले एक पीढ़ी सदस्य हैं. इस वर्ष महाअष्टमी पर मां अंबे का स्वांग मनोज मधु भावसार व आयुष सुनील भावसार धारण करेंगे. वही महानवमी पर माता महाकाली का स्वांग लाला जगदीश भावसार, भगवान नरसिंह का स्वांग अभिषेक नंदकिशोर भावसार,हिरणकश्यप का स्वांग उदित संतोष भावसार, एवं भगवान श्री गणेश का स्वांग आयुष भार्गव व प्रीत भार्गव धारण करेंगे.
निमाड़ी में गाई जाएंगी गरबियां
मोहन भावसार ने बताया की महाअष्टमी एवं महानवमी पर निकलने वाले खप्पर के दौरान गाई जाने वाली गरबियों का अभ्यास सोलह श्राद्ध में रोजाना मिरदिंग एवं झान-मजीरा के साथ किया गया है. अभी नवरात्रि में भी मंडली द्वारा शहर के शक्तिपीठो में गरबियां गाई जा रही हैं. सप्तमी, अष्टमी और नवमी को यह गरबिया सिर्फ श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर में ही गई जाएंगी.