कलमकारी पेंटिंग्स आंध्र प्रदेश राज्य से संबंधित है यह पेंटिंग हाथ से बनाने वाले कपडों पर कलात्मक चित्रों के लिए जानी जाती है जो कि आंध्र प्रदेश की प्रसिद्ध है। यह एक प्राचीन हस्तशिल्प कला है जिसमें हाथ से या बांस की कलम (पेन) का उपयोग करके सूती कपड़े पर प्राकृतिक रंगों से चित्र बनाए जाते हैं। इस कला में मुख्य रूप से पौराणिक कथाओं, धार्मिक दृश्यों, मंदिरों की कहानियों और प्रकृति से प्रेरित डिजाइन का चित्रण किया जाता है।
कलमकारी पेंटिंग: भारतीय कला की अनूठी विरासत
भारत विविधतापूर्ण कलाओं और परंपराओं का देश है, और इन्हीं में से एक है कलमकारी पेंटिंग। यह एक प्राचीन कला रूप है, जिसका उद्गम मुख्यतः आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में हुआ। ‘कलमकारी’ नाम का शाब्दिक अर्थ है “कलम से की गई चित्रकारी”। इस कला में बांस की पतली कलम और प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके कपड़े पर खूबसूरत चित्र बनाए जाते हैं।
कलमकारी का इतिहास
कलमकारी कला की जड़ें भारतीय सभ्यता के प्राचीन काल में गहरी हैं। यह कला मूलतः मंदिरों और धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान विकसित हुई। इसे धार्मिक कथाओं, महाकाव्यों, और पौराणिक कहानियों को चित्रित करने के लिए उपयोग किया जाता था। खासतौर पर रामायण, महाभारत और भगवान विष्णु व शिव की कहानियां इस कला में प्रमुखता से उकेरी जाती थीं। इस कला का उल्लेख 13वीं और 14वीं सदी के इतिहास में भी मिलता है।
मुगल काल में इस कला को संरक्षण मिला और इसे व्यापारिक वस्त्रों पर चित्रित कर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भेजा गया। ब्रिटिश काल में भी कलमकारी वस्त्रों की भारी मांग थी, खासतौर पर यूरोपीय देशों में।
कलमकारी की विशेषताएं
1. प्राकृतिक रंगों का उपयोग: कलमकारी कला में प्राकृतिक रंगों का विशेष महत्व है। ये रंग फूलों, पत्तियों, छाल, और जड़ों से निकाले जाते हैं। उदाहरण के लिए, लाल रंग अनार के छिलकों से और काला रंग आयरन साल्ट (लौह लवण) से तैयार किया जाता है।
2. बांस की कलम: चित्रकारी के लिए बांस की पतली कलम का उपयोग किया जाता है। इसी से कपड़े पर intricate (जटिल) डिज़ाइन बनाए जाते हैं।
3. कपड़े की विशेष तैयारी: कपड़े को चित्रकारी के लिए तैयार करना एक लंबी प्रक्रिया है। इसे पहले दूध और प्राकृतिक रेज़िन (गोंद) में डुबोकर सुखाया जाता है, ताकि रंग गहरे और स्थायी बने रहें।
4. धार्मिक और पौराणिक विषय: कलमकारी में मुख्य रूप से हिंदू देवी-देवताओं, महाकाव्य घटनाओं और धार्मिक प्रतीकों को चित्रित किया जाता है। इसके अलावा प्रकृति से प्रेरित डिज़ाइन, जैसे पेड़, पक्षी और फूल, भी लोकप्रिय हैं।
कलमकारी की दो प्रमुख शैलियां
कलमकारी कला दो मुख्य शैलियों में विभाजित है आज हम इन दोनों शैलियों के ऊपर बात करेंगे कि कलमकारी की दो प्रमुख शैलियों कौन-कौन सी है।
1. श्रीकालाहस्ती शैली: यह शैली पूरी तरह से हाथ से बनाई जाती है और इसमें धार्मिक विषयों का चित्रण प्रमुख है। श्रीकालाहस्ती शैली का केंद्र आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले का श्रीकालाहस्ती क्षेत्र है।
2. मचिलीपट्टनम शैली: मचिलीपट्टनम शैली में ब्लॉक प्रिंटिंग का उपयोग किया जाता है। इसमें बड़े पैमाने पर वस्त्रों पर डिजाइन तैयार किए जाते हैं। यह शैली आंध्र प्रदेश के मचिलीपट्टनम क्षेत्र में विकसित हुई।
कलमकारी का आधुनिक युग में महत्व
आज के समय में कलमकारी पेंटिंग सिर्फ धार्मिक उपयोग तक सीमित नहीं रही है, बल्कि यह फैशन और आंतरिक सजावट (इंटीरियर डेकोरेशन) का हिस्सा बन गई है। कलमकारी साड़ियों, कुर्तों, दुपट्टों, बेडशीट्स और दीवार की सजावट के लिए व्यापक रूप से उपयोग में लाई जा रही है।
सरकार और विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों ने इस पारंपरिक कला को संरक्षित करने और इसके कारीगरों को सहायता प्रदान करने के लिए कई प्रयास किए हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में आज भी हजारों परिवार इस कला के माध्यम से अपनी आजीविका चला रहे हैं।
कलमकारी पेंटिंग भारतीय कला की समृद्धि और विविधता का प्रतीक है। यह न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि इसे विश्व स्तर पर भी पहचान मिली है। इस कला को प्रोत्साहन देकर हम न केवल अपने कारीगरों का भविष्य संवार सकते हैं, बल्कि अपनी विरासत को भी जीवित रख सकते हैं।