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निम्नलिखित में से किस चित्रशैली में फरुखफाल का चित्र मिलता है जिस पर आसिफ खॉ रो बेटो लिखा हुआ हैं?

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सही उत्तर :- मेवाड़ चित्रशैली जिसमें इसका उल्लेख मिलता हैं यह प्रश्न आरपीसी द्वारा आयोजित कॉलेज व्याख्याता तथा आरबीसी द्वारा आयोजित संस्कृत शिक्षा विभाग सेकंड ग्रेड में पूछा गया है इसका सही उत्तर मेवाड़ चित्र शैली होगा।

मेवाड़ चित्रशैली: भारतीय कला की एक अनुपम धरोहर

भारतीय उपमहाद्वीप की चित्रकला में मेवाड़ चित्रशैली का स्थान अत्यंत विशिष्ट और अद्वितीय है। यह न केवल रंगों और रूपों की अभिव्यक्ति है, बल्कि इसके माध्यम से इतिहास के धड़कते हुए पन्नों को देखने का एक माध्यम भी। इसी मेवाड़ शैली के अंतर्गत हमें वह दुर्लभ चित्र प्राप्त होता है, जिसमें फर्रुखसियर का चित्र है और जिस पर लिखा है, “आसिफ खां रो बेटो”। यह एक कला के साथ इतिहास का भी प्रतिबिंब है।

मेवाड़ शैली का परिचय

मेवाड़, राजस्थानी चित्रकला का हृदय स्थल, अपनी अनूठी और जीवंत चित्रशैली के लिए विख्यात है। 16वीं शताब्दी में उदयपुर और आसपास के क्षेत्रों में विकसित इस कला ने अपने समय की सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक धाराओं को अत्यंत सुंदरता से समेटा। यह शैली सजीव रंगों, विस्तृत रूपांकन और ऐतिहासिक संदर्भों से समृद्ध है।

आसिफ खॉ रो बेटो

फर्रुखसियर और ‘आसिफ खां रो बेटो’

जब हम “फर्रुखसियर” के चित्र की बात करते हैं, तो यह केवल एक बादशाह का चित्र नहीं है। यह उस समय की परंपरा और राजनीति की झलक भी है। चित्र में “आसिफ खां रो बेटो” का उल्लेख मेवाड़ शैली की उस परंपरा का प्रतीक है, जिसमें चित्र को उसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भों से जोड़कर प्रस्तुत किया गया।

मेवाड़ शैली की विशेषताएँ

1. ज्वलंत रंगों का उपयोग: मेवाड़ शैली में लाल, पीला, हरा और नीला जैसे जीवंत रंगों का प्रयोग इसे विशिष्ट बनाता है। इन रंगों के माध्यम से चित्र जीवंत प्रतीत होते हैं।

2. विस्तृत विवरण: हर पात्र, वस्त्र, आभूषण और पृष्ठभूमि को सूक्ष्मता से उकेरा जाता है। चित्रों पर लिखित विवरण, जैसे “आसिफ खां रो बेटो,” इस परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

3. ऐतिहासिक और धार्मिक विषय: इस शैली में राजा-महाराजाओं, दरबार के दृश्य और धार्मिक कथाओं का चित्रण किया गया है।

कला के साथ इतिहास का मिश्रण

“फर्रुखसियर का चित्र” मेवाड़ शैली की इस परंपरा को और गहराई देता है। यह केवल एक शासक का चित्र नहीं है, बल्कि उसमें उस युग की राजनीति, शाही संबंधों और सांस्कृतिक प्रभावों की झलक मिलती है। “आसिफ खां रो बेटो” का उल्लेख यह स्पष्ट करता है कि मेवाड़ के कलाकारों ने केवल चित्र नहीं बनाए, बल्कि उनके माध्यम से इतिहास को संरक्षित भी किया।

जयपुर, जैसलमेर और अलवर जैसे अन्य क्षेत्रों की अपनी-अपनी कला शैलियाँ हैं, लेकिन उनकी प्राथमिकताएँ भिन्न थीं। जयपुर धार्मिक चित्रण के लिए प्रसिद्ध था, जैसलमेर प्राकृतिक दृश्यों के लिए, और अलवर ने मुगल प्रभाव को अपनाया। इसके विपरीत, मेवाड़ शैली ने ऐतिहासिक और राजनैतिक घटनाओं को विस्तार और जीवंतता दी, जिससे यह चित्र सीधे तौर पर जुड़ता है।

मेवाड़ चित्रशैली केवल रंगों का संयोजन नहीं है; यह उस युग की धड़कन है। फर्रुखसियर का वह चित्र, जिस पर “आसिफ खां रो बेटो” लिखा है, हमें उस युग में ले जाता है, जब कला इतिहास को संरक्षित करने का माध्यम थी। यह चित्र न केवल मेवाड़ शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर का एक अमूल्य हिस्सा भी है।

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